टूटा दिल
दुनियां में कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनका कोई इलाज नहीं होता शरीर में किसी प्रकार की कोई चोट नहीं लगती लेकिन फिर भी इसके घाव इतने गहरे होते हैं कि किसी किसी की जान तक ले लेते है।
इश्क,प्यार,मोहब्बत एक ऐसा ही रोग है जिसमें इंसान खाना पिना भी भूल जाता है।
मगर जब प्यार,मुहब्बत और दोस्ती में धौखा मिलता है इंसान टूट जाता है कोई तो दूसरो का नुकसान करके खुद को तसल्ली देता है और कोई खुद को तबाह कर लेता है।
हो कोई जख्म दिल के करीब इतना,
तेरे जाने का दर्द हावी ना हो।
उसके हर एक नखरे का मैं दीवाना हूं,
कोई अदा नहीं बाकी जो दिखाई ना हो।
उसकी आंखों की मिले कैद ताउम्र मुझको,
मैं चाहूं भी मगर मुझे रिहाई ना हो।
तमन्ना एक ही पूरी मेरे खुदा कर दे,
रोग ए इश्क़ अता कर भले दवाई ना हो।
मुझको ही देना सजा बेवफाई की मौला,
भले उसने ही मुझसे निभाई ना हो।
दशरथ रांकावत "शक्ति"
हो कोई जख्म दिल के करीब इतना,
तेरे जाने का दर्द हावी ना हो।
उसके हर एक नखरे का मैं दीवाना हूं,
कोई अदा नहीं बाकी जो दिखाई ना हो।
उसकी आंखों की मिले कैद ताउम्र मुझको,
मैं चाहूं भी मगर मुझे रिहाई ना हो।
तमन्ना एक ही पूरी मेरे खुदा कर दे,
रोग ए इश्क़ अता कर भले दवाई ना हो।
मुझको ही देना सजा बेवफाई की मौला,
भले उसने ही मुझसे निभाई ना हो।
दशरथ रांकावत "शक्ति"
प्यार ,मुहब्बत के जो उसूल पहले थे कि सात जन्म तक साथ के सपने बुने जाते थे वे अब नहीं रहे।
ये भी सच है कि :-
दिल की किताब लफ्जो की मोहताज नहीं,
उसूल ये है जो दिल में है आँखों से बोल दो।
आशिकी अब नहीं रही जान की बाजी,
अब तो कपडो़ सी बची है पहनो खोल दो।
हमने तो कहा था की बस पेज मोड़ दो,
वो भी जालिम थी बोली बचपना छोड़ दो।
उससे किया हमने जब इजहार-ए -दिल,
लहरा के जुल्फ बोली मियाँ बहकना छोड़ दो।
वैसे तो मैं उसे कुछ कहता नहीं मगर क्या करता,
मैने भी कहा ऐ गुलशन महकना छोड़ दो।
हर बार मजनूओ का ही जनाजा ए इश्क़ नहीं अच्छा,
तो ए मजनुओ अच्छा है मचलना छोड़ दो।
दशरथ रांकावत "शक्ति"
एक लैला होती थी जो रूठ जाती थी मजनू को मनाने के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ता था अब तो एक लैला के हजार मजनु।
ये भी सच है कि :-
दिल की किताब लफ्जो की मोहताज नहीं,
उसूल ये है जो दिल में है आँखों से बोल दो।
आशिकी अब नहीं रही जान की बाजी,
अब तो कपडो़ सी बची है पहनो खोल दो।
हमने तो कहा था की बस पेज मोड़ दो,
वो भी जालिम थी बोली बचपना छोड़ दो।
उससे किया हमने जब इजहार-ए -दिल,
लहरा के जुल्फ बोली मियाँ बहकना छोड़ दो।
वैसे तो मैं उसे कुछ कहता नहीं मगर क्या करता,
मैने भी कहा ऐ गुलशन महकना छोड़ दो।
हर बार मजनूओ का ही जनाजा ए इश्क़ नहीं अच्छा,
तो ए मजनुओ अच्छा है मचलना छोड़ दो।
दशरथ रांकावत "शक्ति"
एक लैला होती थी जो रूठ जाती थी मजनू को मनाने के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ता था अब तो एक लैला के हजार मजनु।
तुम अब भी मुझसे प्यार करती हो..नहीं तो,
नींद में भी मेरी बात करती हो..नहीं तो।
तुमने कहा था कभी याद भी नही करोगी,
सुना है अब भी आँहे भरती हो..नहीं तो।
मैने कहा था नजर ना लग जाये तुमको,
काला टीका अब भी रखती हो..नहीं तो।
बहुत दूर तक चले है हाथ पकड़े हम,
उस उंगली पर निशान बन गया होगा..नहीं तो।
नींद में भी मेरी बात करती हो..नहीं तो।
तुमने कहा था कभी याद भी नही करोगी,
सुना है अब भी आँहे भरती हो..नहीं तो।
मैने कहा था नजर ना लग जाये तुमको,
काला टीका अब भी रखती हो..नहीं तो।
बहुत दूर तक चले है हाथ पकड़े हम,
उस उंगली पर निशान बन गया होगा..नहीं तो।
तुम्हारी बहुत याद आती है मुझको,
तुम्हें भी याद तो आती ही होगी..नहीं तो।
चलो ठीक है भूल गये हो कौन याद रखता है आजकल,
खुदा करे मिट जाये यादो से फसाने..नहीं तो।
नहीं तो कह कर भी छोड़ दिया मुझे अकेला,
नहीं तो मेरा मतलब है हां तो अरे क्या है सब चौपट कर दिया।
हाहाहा हाहा हा पकडी गयी !
तुम्हें भी याद तो आती ही होगी..नहीं तो।
चलो ठीक है भूल गये हो कौन याद रखता है आजकल,
खुदा करे मिट जाये यादो से फसाने..नहीं तो।
नहीं तो कह कर भी छोड़ दिया मुझे अकेला,
नहीं तो मेरा मतलब है हां तो अरे क्या है सब चौपट कर दिया।
हाहाहा हाहा हा पकडी गयी !
दशरथ रांकावत "शक्ति"
अच्छा लगता है
कैसे कहे उसे की तेरा यु गुस्सा करना अच्छा लगता हे,
ये चुप रहना और मुँह बनाना अच्छा लगता हे !!
मेरा यु बात कह देना तेरा यु बात मान लेना,
दिल का ये पागल खेल सच्चा लगता हे !!
जी चाहता हे उसकी जुल्फों का साया मगर,
टूट न जाये ये रिस्ता थोड़ा कच्चा लगता हे !!
किसी अर्जुन का तीर लगती हे नजरे उसकी ,
में बचना चाहता हु मगर निशाना पक्का लगता हे !!
कैसे कहे उसे की तेरा यु गुस्सा करना अच्छा लगता हे,
ये चुप रहना और मुँह बनाना अच्छा लगता हे !!
मेरा यु बात कह देना तेरा यु बात मान लेना,
दिल का ये पागल खेल सच्चा लगता हे !!
जी चाहता हे उसकी जुल्फों का साया मगर,
टूट न जाये ये रिस्ता थोड़ा कच्चा लगता हे !!
किसी अर्जुन का तीर लगती हे नजरे उसकी ,
में बचना चाहता हु मगर निशाना पक्का लगता हे !!
दशरथ रांकावत "शक्ति"
कद्रे मोहब्बत कहाँ शहर में तुम्ही को लगती तुम्ही को रोना,
यार मोहब्बत कपडो़ जैसे रोज नये है बाबु सोना।
उसे गुरुर की बहुत है आये ये भी कोई बात नयी हैं,
गम रोना और आँसू धुआँ ये अपनी भी जात नहीं है।
इश्क करे बरबाद ये सच है मजनू राँझे नये नहीं है,
बरबादी से नहीं है नाता बाकी अपनी जात वही है।
मजनू लैला रांझा हीर अरसो बीते बात गयी है,
सुना तो तुमने भी होगा कोई किसी बिन मरता नहीं है।
समय चलेगा उम्र ढलेगी अपना कोई साथ नही है,
लेकिन तब भी याद रहोगी नक्शा तेरा जाता नहीं है।
सुना तो तुमने भी होगा कोई किसी बिन मरता नहीं है।
समय चलेगा उम्र ढलेगी अपना कोई साथ नही है,
लेकिन तब भी याद रहोगी नक्शा तेरा जाता नहीं है।
दशरथ रांकावत "शक्ति"
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