MAA ( माँ )
ईश्वर हर जग हर किसी की मदद नहीं कर सकता है लिए उसे अपना एक प्रतिरूप धरती पर मां के रूप में भेजा !
धरती पर शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसे कभी मां को महसूस नहीं किया हो खुद भगवान भी इसी एक शब्द को बोले के लिए धरती पर अवतार लेते हैं।
सृजन माॅं का
तन्हाइयों के वक्त एक दिन भगवान ने यूं मन बनाया,
अद्भुत सृजन की ठान मन में प्रेम का दीपक सजाया।
जज़्बात की मिट्टी को लेकर प्यार में बेहद मिलाया,
पाषाण सीरत पुष्प सुरत पर देह को कोमल बनाया।
अपनी सभी अच्छाईयों से भगवान ने उसको सजाया,
मुस्कान और आंसू दया के साथ एक ढांचा बनाया।
सहना सिखाया रोना सिखाया पर नहीं कहना सिखाया,
मेहनत इतनी करके भगवान ने "माॅं" को बनाया।
✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'
भाषाई सुंदरता का समावेश करते हुए पेश है एक कविता
राजस्थान के मारवाड़ की क्षेत्रीय भाषा में लिखित मां पर कविता .....
एक प्रोढ व्यक्ति के उम्र के आखिरी पड़ाव में आ रही बचपन की यादों के भावावेग पर आधारित है....
*तु याद है मां मैं थने भुलू कीकर*
तु याद है माँ मैं थाने भुलू कीकर,
हुयो हूँ मोटो थारो ही दूध पीकर,
तु याद है माँ में थाने भुलू कीकर.....
तु नी वेती तो मने सिनौन कुण करावतो,
तु नी वेती तो मने कपडा कुण पिणावतो,
तु नी वेती तो मारे टीपन कुण बणावतो,
थारा सब उपकार में गीनु कीकर,
तु याद है माँ में थाने भुलू कीकर.....
मारे तु मेला माऊ काँई चीज नी लावती,
मैं जीन माते हाथ धरतो तु सब मोलावती,
पापा री मार सु मने तु ही तो बचावती,
गलतियां करता जदे बाबाऊ डरावती,
थारी उन गुडकीयोऊ मैं डरु थर थर,
तु याद है माँ में थाने भुलू कीकर.....
लागी जद मारे तु किती रोई है,
मारी चोट खुदरा आँसूडाऊ धोयी है,
भाई जद मारतो तुही तो बचावती,
लाड़ऊ बैठा ने तुही तो जीमावती,
लागे घणी भूख अकेलो खाऊ कीकर,
तु याद है माँ में थाने भुलू कीकर.....
नज़र नी लागे जनु काजल लागावती,
सर्दी मे हर रोज स्वेटर पहनावती,
गर्मी में रोज मारे पाउडर लगावती,
बरसात रा मौसम मैं जद भीग में जावतो,
आग कने बैठाने पकौड़ा जीमावती,
जीभ मातु वो स्वाद जावे कीकर,
तु याद है माँ में थाने भुलू कीकर.....
आज तु कठै गयी है माँ में घणो अकेलो हूँ,
लम्बा घणा रस्ता अकेलो चालू कीकर,
चोखा लाऊ नम्बर कोई राजी कोनी होवे,
घणा कमाऊ पैसा मन राजी कोनी होवे,
भाईसा भी थाने याद कर कर रोवे,
आज बाबा घणा है कोई खा जावेला,
आडो़ खुलो हे घर रो कोई आ जावेला,
पापा रो धीरज भी हमें टूट टूट जावे,
स्वासां री डोर बांकी छूट छूट जावे,
जवानी री जिंदगी माने महंगी घणी पड़गी,
खुशीयां री पतंग जाने की जागा अड़गी,
ऐ माँ थारी रात दिन ओलु घणी आवे,
लौट आव मायी थारो टाबर बुलावे,
पचपन री उमर मैं पाछी पैण लु नीकर,
तु याद है माँ में थाने भुलू कीकर.....
दशरथ रांकावत "शक्ति "
शब्दार्थ:-
कीकर- कैसे
हुयो- हुआ
वेती- होती
मने- मुझे
सिनौन- स्नान
कुण- कौन
पिणावतो- पहनाता
टिपण- टिफिन
मारे- मेरे
माऊ- में से
जिन माते- जिस पर
धरतो - रखता
मोलावती- खरीदती
लागी - चोट लगना
खुदरा- अपने
जद- जब
आंसूडाऊ- आंसूओं से
लाडऊ- प्रेम से
घणो- बहुत
बाबा- नकारात्मक ताकतें
आडो- दरवाजा
बांकी- उनकी
अडगी- अटक गई
ओलू- याद
टाबर - बेटा/पुत्र
पाछी- फिर से
पैण लू - पहन लू
नीकर- बच्चों की निकर
हिंदी और मारवाड़ी दोनों की कविताएँ अत्यंत सुंदर! विशेषतः मारवाड़ी में लिखी कविता बहुत बहुत उत्तम है, मर्मांतक है!
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