भाषा प्रयोग
नमस्कार मित्रों !
शरीर के बहुत से अंगों से निकल रही पीड़ा को शब्दों में ढालने का मन बना लिया है आखिर लेखक होने का कुछ तो फायदा हो।
एक भजन की कुछ पंक्तियां याद आ रही है कि
अगर ग़लती रूलाती है तो राहें भी दिखाती है,
मनुज गलती का पुतला है जो अक्सर हो ही जाती है।
लिखने वाले ने पता नहीं कैसे लिखा ज्ञान से या अनुभव से मगर लिखा सत्य है। गलतियां वैसे कई प्रकार की होती है मगर मैं उनको दो भागों में बांटता हूं १. शारिरिक क्रिया द्वारा २. गैर शारिरिक
जीवन में मेरा जो अनुभव रहा वो अभी तक गैर शारिरिक रहा मगर परिणाम में प्रतिक्रिया शारिरिक रूप में मिली। और ईश्वर के अन्याय के तहत शारीरिक गलती जैसा भौतिक स्वरूप हमें दिया नहीं।
खैर मुख्य जानकारी पर लौटते हैं जिसके लिए इतनी भुमिका बनाई गई।
जीवन के कुछ दुविधाजनक संस्मरण आप सभी से साझा करना चाहता हूं इनके प्रस्तुतिकरण से यदि आपको किसी भी प्रकार की सीख मिलें तो आशीर्वाद स्वरूप पुरवाई के समय होने वाले दर्द में कमी का आशीर्वाद प्रदान किजिएगा।
१.- एक बार शुद्ध हिन्दी भाषी बनने के चक्कर में हमने हमारे लंगोटिये यार को वैशाख नंदन क्या कहा हमारे प्राण लेने को आतुर हो गया पांच दण्डवत के बाद भाई साहब ने हमें जीवन दान दिया।
खैर ये तो जीवन की लीलाएं है मगर परिस्थितियां तो तब प्रतिकूल हो गई जब हम दोनों को बीच राह में साक्षात शीतलावाहन खर के दर्शन हो गए मैं कुछ कहता उस के पहले ही मानवीय काया में दानव का प्रवेश हुआ और तीन दिवस तक बांयी आंख और दांयी भुजा दोनों मित्र को याद करके हरि कीर्तन करती रही ।
२. ऐसी ही एक असमंजस की स्थिति तब बनी जब पहली बार सुना कि रेलगाड़ी को शुद्ध हिन्दी में लोहपथ गामिनी कहते हैं फिर तो धुन सवार हुई सबसे पूछने की जब लोग नहीं बता पाते थे तब तक तो खुद के ज्ञान पर गर्व होता था मगर फजीहत तो तब हुई जब एक बुजुर्ग से पूछ लिया ।
भाई साहब हमारी तो खटिया खड़ी हो गई जब उन्होंने कहा बेटा ये तो कुछ नहीं क्रिकेट को हिंदी में कहते हैं गोल गट्टम लक्कड़ पट्टम तड़ातड़ मार प्रतियोगिता और साईकिल को द्विचक्र वाहिनी ।
खैर भाषाई समझ पर बहुत से रोचक किस्से हैं मगर मित्रों जीवन के इस अनुभव और इस कथा का सार बस इतना ही है कि कभी भी अल्प ज्ञान से भाषा प्रयोग न करें ये जानलेवा साबित हो सकती है।
✍🏻 दशरथ रांकावत 'शक्ति'
🙏🙏
Nice
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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